पूनम का चाँद
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ऐसा नहीं था की ज़िन्दगी में कुछ कमी थी ,
हाँ , कभी कभी , जब सूरज अपनी रोशनिको अलविदा कह देता ,
जब सितारे भी बादलों में चुपजाते ,
तब थोड़ा बोहोत अकेलापन जरूर महसूस होता था ,
फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ,
अँधेरेको चीरती हुई एक रोशनिसि आयी ,
हलकी सी बहाने लगी शीतलसी हवा,
धुंदली सी मंज़िल भी खुलने लगी ,
आँख उठके देखता हूँ , पूनम का चाँद खिला था.
आसमान में सितारे तोह बोहोत है,
पर इस पूनम की चांदनी से आँगन खिला है.
लोग प्यार में चाँद मांगते है ,
मेरेलिए तोह चाँद खुद जमींपे उतर आया है .
अब सूरज की ढलने से दिल तनहा नहीं होता है,
रत में भी चाँद मेरे साथ जगता है .
--लोकेश शास्त्री