थोड़ा टूटा सा हूँ मैं , खुद से ही रूठा सा हूँ मैं ,
खामोशियां है छाई, खुद नहीं जनता कहाँ खो सा गया हूँ मैं .
धुंदलीसी मंजिल है , बहका सा हूँ राहोंमें ,
अब तो चलने से भी डरता , हरबार मै गिरता , ना खुद को संभल पता हूँ मै.
हर कोशिश से कतराता हूँ मै , हर उम्मीद से डरता हूँ मै.
हर हार पे कभी खुद को , तो कभी किस्मत को कोसता हूँ मै.
थोड़ा टूटा सा हूँ मैं , खुद से ही रूठा सा हूँ मैं ,
खामोशियां है छाई, खुद नहीं जनता कहाँ खो सा गया हूँ मैं .